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कवितानज़्म
*ख़्वाहिशें कहाँ ख़त्म होती हैं* मंज़िल वहींपर है आरज़ू-ए-हयात-ए-मुस्त'आर जहां ख़त्म होती हैं येह ख़्वाहिशें मग़र बशर मरकर भी इस जहाँ में कहाँ ख़त्म होती हैं ©️डॉ.एन.आर. कस्वाँ "बशर"/३०/११/२०२३