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कवितानज़्म
खुदा तुम भी नहीं मुक़म्मल हम भी नहीं खामियों से जुदा तुम भी नहीं कमियों के पुतले हैं हम मग़र बशर खुदा तुम भी नहीं ©️डॉ.एन.आर. कस्वाँ "बशर"/२७/११/२३