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कवितानज़्म
ग़मे-हिज्र न खुशी मिलन की हमको इक लत लग गई है लिखन की कोई अब हमको चाह नहीं है दाद -ए-सुख़न की कोई अब हमको फुर्क़त फ़िराक़ फासले दूरियां सब मिट गईं बशर ग़म ए हिज्र न खुशी मिलन की कोई अब हमको ©️ डॉ.एन.आर. कस्वाँ "बशर" ०५/१२/२०२३