कवितानज़्म
मोती लड़ियों में पिरोने लगती है
चश्म येह मुंतज़िर किसी की सुध-बुद्ध खोने लगती हैं
वोह जब सामने मग़र होता है येह आंखें रोने लगती हैं
खाली आंखों के सुनसान फ़लक पर उमड़-घुमड़ कर
घटाएं घिर- घिर आने लगती हैं बारिश होने लगती है
इसक़दर बशर अजस्र आंसुओं की झडी लग जाती है
आशा की शबनम के मोती लड़ियों में पिरोने लगती है
@डॉ.एन.आर. कस्वाँ "बशर"/०५/१२/२०२३