Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
मोती लड़ियों में पिरोने लगती है - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

मोती लड़ियों में पिरोने लगती है

  • 60
  • 2 Min Read

मोती लड़ियों में पिरोने लगती है

चश्म येह मुंतज़िर किसी की सुध-बुद्ध खोने लगती हैं
वोह जब सामने मग़र होता है येह आंखें रोने लगती हैं

खाली आंखों के सुनसान फ़लक पर उमड़-घुमड़ कर
घटाएं घिर- घिर आने लगती हैं बारिश होने लगती है

इसक़दर बशर अजस्र आंसुओं की झडी लग जाती है
आशा की शबनम के मोती लड़ियों में पिरोने लगती है

@डॉ.एन.आर. कस्वाँ "बशर"/०५/१२/२०२३

logo.jpeg
user-image
तन्हा हैं 'बशर' हम अकेले
1663935559293_1726911932.jpg
ये ज़िन्दगी के रेले
1663935559293_1726912622.jpg
यादाश्त भी तो जाती नहीं हमारी
logo.jpeg
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg