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हालाते-हयात को बशर नसीब समझ बैठे - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

हालाते-हयात को बशर नसीब समझ बैठे

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*हालाते-हयात को नसीब समझ बैठे*

अपने ही हबीब को हम रक़ीब समझ बैठे
रक़ीब को हम अक़्सर हबीब समझ बैठे

खोल बैठे जख़्म हरे नमक की दुकान पर
मक़्तल के जल्लाद को तबीब समझ बैठे

ना रहा कभी वास्ता जिसे हमारे हाल का
इक कातिल को दिल के क़रीब समझ बैठे

पछतानेसे होगाक्या चिड़िया चुग गई खेत
हालाते-हयात को बशर नसीब समझ बैठे


©️ डॉ.एन.आर. कस्वाँ "बशर" ०४/१२/२०२३

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