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कवितानज़्म
किसी और का नसीब क्या जानें किराए के मकाँ में रहने वाले हैं मुर्शिद दैरो-हरम के मसाइल हम ग़रीब क्या जानें! हमकोतो मालूम नहीं अपनाही नसीब हम बशर किसी और का नसीब क्या जानें! ©️ डॉ.एन.आर. कस्वाँ "बशर"/३/१२/२०२३