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*बात नहीं होती* - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

*बात नहीं होती*

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*बात नहीं होती*
माना कि फ़िराक़ में हबीब से मुलाक़ात नहीं होती
उनकी मुझ से मेरी उनसे आजकल बात नहीं होती
ताल्लुक़ात गर बनाए रखने के जज़्बात जिंदा होंतो
बातचीत और गुफ़्तगू में बशर ऐहतियात नहीं होती
©️डॉ.एन.आर. कस्वाँ 'बशर'

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तन्हा हैं 'बशर' हम अकेले
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ये ज़िन्दगी के रेले
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यादाश्त भी तो जाती नहीं हमारी
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प्रपोजल
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वो चांद आज आना
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