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कवितानज़्म
*भीतर भरा समंदर है* कहते सूफी संत फ़कीर मुर्शिद और कलंदर हैं आदमी खुद ही अपनी तक़दीर का सिकन्दर है बाहरी रक़ाबत से ज्यादा रक़ीब उसके अंदर हैं भरा हुआ भीतर उसके तबाहियों का समंदर है @डॉ.एन.आर. कस्वाँ 'बशर'