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कवितानज़्म
विसाल-ए-यार से शुरू हिज्र-ए-यार पर ख़त्म ! येह जो प्यार है 'बशर' कुछ नहीं सिवाय ग़म ! ©️डॉ.एन.आर. कस्वाँ "बशर"/२७/११/२३