Or
Create Account l Forgot Password?
कवितानज़्म
*मुड़कर भी नहीं देख* वक़्त का दरिया ऐसे गुज़र गया के पलभर समय की चंचल लहरों को छूकर भी नहीं देखा वक़्तकी धारा में आगे बहते गए हम ने साहिल पर खड़े अहबाब को मुड़ कर भी नहीं देखा ✍️ ©️ डॉ. एन. आर. कस्वाँ "बशर"/२४/११/२३