Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
आदमी मैं मरा हुआ हूँ - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

आदमी मैं मरा हुआ हूँ

  • 50
  • 2 Min Read

रंग मेरे अब गिरगिट की तरह बदलते हैं
जमाने से मैं जरा डरा हुआ हूँ !
जज़्बात मिरे मौसम की तरह बदलते हैं
मैं इन्सान कुछ सिर फिरा हुआ हूँ !
ऐतबार मिरा तुम सोच समझकर करना
शख़्स मैं बशर बहुत गिरा हुआ हूँ !
चलती सांसें देख कर गुमराह ना होना
दर'असल आदमी मैं मरा हुआ हूँ !

© डॉ.एन.आर. कस्वाँ "बशर"
सरी, कनाडा/२१/११/२०२३

logo.jpeg
user-image
चालाकचतुर बावलागेला आदमी
1663984935016_1738474951.jpg
वक़्त बुरा लगना अब शुरू हो गया
1663935559293_1741149820.jpg
मुझ से मुझ तक का फासला ना मुझसे तय हुआ
20220906_194217_1731986379.jpg
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg