कवितानज़्म
*अहसासे-फुर्क़त हुआ हदे- हयात से निकलकर*
दर्दे -फ़िराक़े-हबीब शुरू हुआ बशर कुछ दूर चल कर
अहसासे-फुर्क़त हुआ उनके हदे- हयात से निकलकर
रंज-ओ-मलाल वो क्या जाने हाल-ए-हिज्र का हमारा
खाक हुए जा रहे हैं दर्द-ए-दिल की तपिश में जलकर
©️ डॉ.एन. आर. कस्वाँ 'बशर'
सरी, कनाडा/२०/११/२०२३