कविताभजनदोहाछंदचौपाईगीत
साहित्य अर्पण मंच को सादर नमन ।
शीर्षक "खुद्दार युवक" के संदर्भ में मेरी समझ व बुद्धि अनुसार
चंद पंक्तियां प्रस्तुत हैं ।
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राम को ही बस भरत सा भाई मिल सकता है।
यूँ ही नहीं कोई जन जन के दिल बसता है ।।
चिता जलानी पड़ती है, जीते जी जिसको ।
तब कोई सीता सी नारी बन सकता है ।।
करना है गर नाम ठोकरें खानी होंगी ।
तब जाकर गांधी, सुभाष सा बन सकता है ।।
फूलों पर चलकर किसका कल्याण हुआ है ।
नाम का खातिर राम भी कांटो पर चलता है ।।
अगर तमन्ना है कुछ कर जाने का दिल में ।
फतह शिखर पर लगड़ा होकर कर सकता है ।।
हर्ज हमें क्या एक घोंसला टूट गया तो ।
हिम्मत है तो नया आशियाँ बन सकता है ।।
हम इतने भी नही गए-गुजरे हैं यारो ।
चीर के सीना पत्थर का जल बह सकता है ।।
लड़ता है जो जंग, परास्त वही होता है ।
विना लड़े उससे बरदास्त नही होता है ।।
चींटी चढ़ना नहीं छोड़ती दीवारों पर ,
मजदूरों का नाम लिखा है मीनारों पर ।
कोशिश से तो सेतु बना सागर में यारो ।
कौन सा ऐसा कार्य जो तू ना कर सकता है ।।
हमें नहीं शिकवा मलाल अब और किसी से ।
काट ही लेंगे सफर जिन्दगी दौर खुशी से ।।
ढेर जिन्दगी जाने से क्या हासिल होगा ।
मौत से भी मशहूर जगत मे हो सकता है ।।
जविन के इस हवन कुण्ड मे, आहुति सबको देनी होगी ।
मिली जिन्दगी जैसी हंँस कर जीनी होगी।
आज खिला है फूल अगर मैयत की खातिर ।
कल सारा गुलदान तुम्हारा हो सकता है ।।
यूँ ही नहीं कब्र पर चढ़ते फूल किसी के ।
जनम जनम के पाप कर्म से धो सकता है ।।
अगर तेरे मन का संकल्प प्रचंड हुआ तो ।
तू एक दिन आजाद, कलाम सा हो सकता है ।।
जब जैसा हो वक्त नजाकत समझो यारो ।
तू चाहे तो मुट्ठी में जग हो सकता है ।।
जीवन है संघर्ष, अगर स्वागत है इसका ।
'रज्जन' जैसा शख्स भी शायर बन सकता है ।।
शब्द रचना : रज्जन सरल
सतना म०प्र०