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Ghazal - Happy Srivastava (Sahitya Arpan)

कवितागजल

Ghazal

  • 89
  • 3 Min Read

हमने जिसे इक ज़िन्दगी कह कर गुज़ारी है
उसमें ख़ुशी कुछ भी नहीं बस ख़ाकसारी है

रंज-ओ-अलम के दौर में जैसी उदासी थी
उतनी ख़ुशी के मौसमों में सोगवारी है

अब तक दिल-ए-नाशाद में रहता है दौर-ए-जाम
इस जाम की हर शख़्स से इक बुर्दबारी है

आँगन जहाँ पर अब तलक बस ख़ार होते थे
इक फूल के आने पे कितनी ख़ुशगवारी है

मेरे जहाँ में मर्द अपनी राय देते हैं
मेरे जहाँ में औरतें मर्दों पे भारी है

'अंबर' कोई पूछे कि कैसे इश्क़ होता है
हमको बयाँ करने की कितनी बेक़रारी है

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