कवितानज़्म
*अंधेरे*
सायों से सहमी बस्तियां डरा करती हैं घुप्प अंधेरे जब हुआ करते हैं
रस्म -ए -रौशनाई के इन शहरों में श्वेत उजाले बे-अदब हुआ करते हैं
शब -ए -जश्न -ए -चराग़ां को सजाने घर-घर जलती हैं कतारें दीयों की
मुफलिस की बस्ती में बत्ती गुल होती है घर रौशन कब हुआ करते हैं
©️ डॉ.एन.आर.कस्वाँ "बशर"
सरी, कनाडा