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*तू जमाने बग़ैर मुतमईन नहीं है* - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

*तू जमाने बग़ैर मुतमईन नहीं है*

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*तू जमाने बग़ैर मुतमईन नहीं है*

नज़र किसी की इतनी भी महीन नहीं है
जो समझे कौन है, कौन ज़हीन नहीं है

न आस्मा से टपका ना खजूर पे अटका
तू जमीन से है तिरी कोई जमीन नहीं है

पुर्जा पुर्जा जुड़ा है येह मु'आसरा हमारा
तू फ़क़त इस का पुर्जा है मशीन नहीं है

सर पर उठा रखा है आस्मां तुमने अपने
तू आस्माँ तले है तुझ को यक़ीन नहीं है

हर किसीको है फिक्र अपने क़द की यहां
हर शख़्स समझेहै उससे बेहतरीन नहीं है

बासी अख़बार हुए हैं ख़यालात जमाने के
सोच लोगों की यहांपर ताज़ातरीन नहीं है

तिरे बग़ैर शाद है खुश है येह सारा जमाना
तू मग़र बशर जमाने बग़ैर मुतमईन नहीं है

©️डॉ.एन.आर. कस्वाँ "बशर"

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