कवितानज़्म
आँखें जब - जब सजल हो गई
नई नई और कई ग़ज़ल हो गई
फ़कीर हो गया उसी में खो गया
सज्दे में खुदा की फ़ज़ल हो गई
संग आगाजे-सफ़र-ए-हयात के
मुक़र्रर हमारी अजल हो गई
डिगे पांव धरा दल-दल हो गई
टिके पांव जमीं धरातल हो गई
राहे -सफ़र गर किरदार चल पड़े
असफल कहानी सफल हो गई
आसान -सा हो गया सारा सफ़र
राहे- सफ़र अगर समतल हो गई
मुश्क़िल बहुत ही हो गया सफ़र
अगर डगर उत्तलावतल हो गई
दिन बदल गए तो दिल बदल गए
ख़बर जमाने की पल पल हो गई
कदम जहां -जहां पड़े वहीं बशर
पथरीली ज़मीन मल- मल हो गई
डॉ.एन.आर. कस्वाँ "बशर"
©️डॉ.एन.आर. कस्वाँ "बशर"