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कवितानज़्म
*हम क्यूं करें* किसी तीसरे पर बशर होकर फिदा, गोया ज़िक्र -ए -जफ़ा-ए-हबीब हम क्यूं करें! फ़िक्र-ए -जमीं-आस्माँ करे है खुदा, फ़जूल ज़ाहिर अपनी तजवीज़ हम क्यूं करें! ©️डॉ.एन.आर. कस्वाँ "बशर"