कवितागीत
"आधुनिक पथभ्रष्ट समाज"
प्रतिष्ठा अपनी कविता से सबको समझाने आई है ।
अपने निज अनुभव से भ्रष्ट समाज दिखाने आई है।
न जाने क्या पाने को अटका हुआ है समाज ।
न जाने कहां से आया भटका हुआ समाज।
चारों और भाईचारा था,
प्यारा देश हमारा था।
एक रहो नेक रहो यही हमारा नारा था।
खुशहाली से जीता ये जग सारा था।
न जाने कहां से आया ये ईर्ष्या और अंधविश्वास।
ना जाने क्यों है ,यह भटका हुआ है समाज।
जानें कैसे बिखर गया ये महापुरषों द्वारा रचित समाज ।
ना जाने क्यों धूर्त बुराइयों से घिरा हुआ है ये समाज ।
दूसरो की संस्कृति अपनाने को तड़प रहा है ये समाज ।
अपनी संस्कृति है अतुलनीय ये नही समझ पा रहा समाज।
समाज में व्याप्त बुराईयो को, भगवन तुम्हे मिटाना होगा ।
सब भूल चुके है मानवता को गीता फिर से गाना होगा ।
Writer_प्रतिष्ठा "राशी"