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"आधुनिक पथभ्रष्ट समाज" - हर्षित अवस्थी मानस (Sahitya Arpan)

कवितागीत

"आधुनिक पथभ्रष्ट समाज"

  • 68
  • 4 Min Read

"आधुनिक पथभ्रष्ट समाज"

प्रतिष्ठा अपनी कविता से सबको समझाने आई है ।
अपने निज अनुभव से भ्रष्ट समाज दिखाने आई है।


न जाने क्या पाने को अटका हुआ है समाज ।
न जाने कहां से आया भटका हुआ समाज।

चारों और भाईचारा था,
प्यारा देश हमारा था।

एक रहो नेक रहो यही हमारा नारा था।
खुशहाली से जीता ये जग सारा था।

न जाने कहां से आया ये ईर्ष्या और अंधविश्वास।
ना जाने क्यों है ,यह भटका हुआ है समाज।


जानें कैसे बिखर गया ये महापुरषों द्वारा रचित समाज ।
ना जाने क्यों धूर्त बुराइयों से घिरा हुआ है ये समाज ।


दूसरो की संस्कृति अपनाने को तड़प रहा है ये समाज ।
अपनी संस्कृति है अतुलनीय ये नही समझ पा रहा समाज।

समाज में व्याप्त बुराईयो को, भगवन तुम्हे मिटाना होगा ।

सब भूल चुके है मानवता को गीता फिर से गाना होगा ।

Writer_प्रतिष्ठा "राशी"

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हर्षित अवस्थी मानस

हर्षित अवस्थी मानस 10 months ago

बहुत सुंदर रचना

प्रपोजल
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वो चांद आज आना
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