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कवितानज़्म
बेमुरव्वत इतने भी न बनो के मूरत-ए-संग बन जाए सामने वाला तंज इस क़दर भी कसो कि हंसते हंसते रोने लगे मुस्कुराने वाला ©️डॉ.एन.आर. कस्वाँ "बशर"