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कवितानज़्म
*अहसासात* हमने जब अपने जज़्बात -ओ -अहसासात लिखे लोगों को महज बशर हमारे फौरी ख़्यालात दिखे येह इल्म-ओ-हुनर वाले तो निपट जाहिल निकले अश्आर तमाम सुख़न हराम बेसबब बेबात दिखे ©डॉ.एन.आर. कस्वाँ "बशर" सरी, कनाडा /९/११/२३