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अहबाब - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

अहबाब

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*अहबाब*

अहबाब अपने समझे थे जिन्हें बशर हम सदा सोचे समझे बग़ैर
वक़्त-ए-ज़रुरत मग़र आजमाया तो निकले सारे पराये और गैर

डॉ.एन.आर.कस्वाँ "बशर"\१२\११\२३

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