कविताभजनगजलदोहाछंदचौपाईगीत
जबसे सम्हाला है होश हमने ,
गमों से ही रहा नाता रहा है हमारा ।
पत्थर का दिल हैं रखते सारे जहांन वाले ,
रज्जन सरल को राघव बस तेरा ही सहारा ।।
जिन्दगी के साये हमे ये कहांँ ले आए।
बडी तेज आंधियां ये चराग बुझ न जाए ।
हमने खुशी थी मांँगी ए खुदा जहांँ न मांँगा ।
आने से पहले खुशियाँ गम दे गया विधाता ।
अपनों से टूटा रिस्ता कैसा है तू फरिस्ता ।
दुनियांँ मे हम थे आए एक तेरे ही सहारे ।
बड़ी तेज आंधियां ...........
जब दोस्त दोस्त न रहा दुश्मनों को क्या कहें ।
तेरे जहाँ पर ऐ खुदा अब तो हम कैसे रहें ।
गैरों से शिकवा क्या करें अपने हुए पराये ।
बड़ी तेज आंधियां हैं ये चराग........
पिंजड़े के पंछी बन गए जो थे खुले परिन्दे ।
जो थे कभी फरिस्ते अब बन गए दरिन्दे ।
मिट्टी के घरौंदों में घी के दिए जलाए।
बड़ी तेज आंधियां हैं ये चराग बुझ न जाए।
खुद के लहू की स्याही रज्जन कलम डुबाये ।
बड़ी तेज आंधियां हैं ये चराग बुझ ना जाए ।।
रज्जन सरल
सतना म०प्र०