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असफलता से सफलता की ओर - Shashi Dhar Kumar (Sahitya Arpan)

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असफलता से सफलता की ओर

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रमेश बिहार के सुदूर पिछड़े इलाके से निकलकर दिल्ली आता है, अपने बेहतर भविष्य की तैयारी के लिए जब वह पहली बार दिल्ली स्टेशन पर उतरकर अपने एक गाँव के ही जान-पहचान वाले के यहाँ जाता है। अगले दिन ही जिस संस्थान में तैयारी के लिए नामांकन लिया था वहाँ जाकर देखता है तो अपने आप की स्थिति उसे पता चलती है कि उसकी तैयारी कहाँ और किस स्तर की है। फिर धीरे धीरे वह अपनी तैयारी करता है समय के साथ वह दिन भी आता है जब उसे परीक्षा देना है और अपने तैयारी के हिसाब से रमेश अपना चुनाव तय मानता है। उसे लग रहा था कि उसकी तैयारी परीक्षा के मानकों के अनुसार है अतः वह परीक्षा में पास हो जायेगा। परीक्षा देने के बाद परीक्षाफल आने में समय था तो वह वापस अपने गाँव आ गया। दो महीने बाद परीक्षाफल आया लेकिन यह क्या वह अच्छे नंबरों से पास होने की सोच रहा था लेकिन यहाँ तो वह फेल हो गया था। अब वह सोचने लगा की दुनिया क्या कहेगी की बड़ा दिल्ली गया था तैयारी करने, लेकिन क्या हुआ फेल हो गया, कैसा तैयारी किया पता नहीं पास भी नहीं हो पाया, यह सब सोचकर उसका आत्मविश्वास डगमगाने लगा। इस एक असफलता ने उसके अंदर नकारात्मकता भर दिया जिसकी वजह से उसे अपने जीवन का पछतावा होने लगा, उसे लगने लगा कि वह अब जी कर क्या करेगा।

इसी बीच उसके एक दोस्त का फ़ोन आता है जिससे उसकी दोस्ती दिल्ली में ही कक्षा लेते वक़्त हो गयी थी दोनों आपस में व्यक्तिगत बातें साझा करते ही थे साथ में पढ़ाई पर भी बात कर लिया करते थे इस प्रकार आपस में वे अपने संशय को मिटा पा रहे थे। उसके दोस्त का भी सेलेक्शन नहीं हो पाया था इसी वजह से वह भी परेशान था उसने फ़ोन कर पूछा अब आगे वह क्या करना चाहता है तो उसके दोस्त ने कहा मेरे पापा कह रहे है एक साल और तैयारी कर के देख ले नहीं होगा तो कुछ और सोचेंगे, रमेश को भी उसने यही सलाह दी फिर रमेश भी अपने पापा से बात कर वापस दिल्ली आ गया फिर से दुने उत्साह के साथ तैयारी करने लग गया।

इस बार अपनी सुविधाजनक जीवन को छोड़कर दोनों दोस्तों ने जमकर पढ़ाई की हर टॉपिक को कवर करने का प्रयास किया और उन्हें जहाँ लगता है उनकी स्थिति कमजोर है या परीक्षा में हो सकती है तो वे आपस में डिस्कस कर उसे सही कर रहे थे। आखिर में एक साल के हाड-तोड़ मेहनत के बाद परीक्षा का वह दिन भी आया जिसका दोनों दोस्तों को बेसब्री से इन्तजार था। जब वे परीक्षा देकर आये तो वे दोनों आत्मविश्वास से भरे हुए लग रहे थे दोनों दोस्तों के घरवाले भी उनकी बातों से यह उम्मीद लगाए हुए थे कि इस बार तो उनके बच्चे का सेलेक्शन हो पायेगा ऐसी उम्मीद थी। दो महीने बाद परीक्षाफल आया और वे दोनों अच्छे नंबरों से पास हुए। दोनों ही परिवार आपस में एक दूसरे को मिठाइयां खिला रहे थे और ख़ुशी से झूम रहे थे।

इसीलिए कहते है जीवन में कभी कभी असफल होने पर नकारात्मकता घर कर जाए तो पछतावे में जीवन जीने के बजाय उससे निकलने के उपाय सोचने चाहिए और अपनों से बात कर उसका समाधान सोचना चाहिए। कभी कभी हम एक सुविधाजनक माहौल में जीने के आदि हो जाते है उसकी वजह से भी एक तरीके से सोचने का नजरिया बन जाता है। जीवन में हर समस्या का समाधान है लेकिन उसके हल को सोचने के बजाय लोग समस्या पर ज्यादा फोकस करने लग जाते है जिसकी वजह से हम सबके जीवन में जीने का नजरिया बदलता जा रहा है। इस भाग-दौड़ वाली जिंदगी में अपनों के साथ बातचीत और इसकी समस्या के बारे में बात करने से हम अपने साथ-साथ अपने घर, समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों के प्रति सजग रहकर इस समाज को एक सुन्दर और स्वस्थ मानव दे पाएंगे तभी यह समाज सुन्दर बनेगा।
©️✍️ शशि धर कुमार

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