कवितालयबद्ध कविता
करवा चौथ स्पेशल
प्रेम पर रज्जन सरल की अभिव्यक्ति
प्रेम बिना जग सूना लागे प्रेम सबहुंँ को सार बतायो ।
आनंद अनुभव होत प्रेम लें प्रेम बीज अ़ँकुवार कहायो ॥
प्रेम बिना गुन, जोवन, रूप को ,रज्जन सब बेकार बतायो ।
प्रेम कठिन पर प्रेम है कोमल प्रेम ही सुख को सार कहायो ।।
प्रेम ना जान्यो कछु नहि जान्यो प्रेम ईश दोनो सम जानो ।
प्रेम प्रियहिं सर्वस्व जगत में प्रेम बिना सब धूरि बखानो ॥
प्रेम मिले वैकुण्ठ मिले अरु प्रेम बिना जग नरक ही मानो ।
रज्जन प्रेम की बात अनोखी प्रेम को पंथ बड़ो ही सुहानो ।।
बलखाय चली महकाय गली बृषभान लली गोकुल की ओरी ।
शाम मिलो बृज कुंजन महँ अरु,नैन लड़ें बॅंधी प्रीत की डोरी ॥
रज्जन सरल निहारि रहे जनु निरखत हैं मनो चंद
चकोरी ।
पूंछत कान्ह बता दो कोई मैं कारो हूँ तो क्यूँ राधे है
गोरी ॥
प्रेम वयार वसंत बहै व चहै बृजराज की प्रीति सुहानी ।
श्याम को प्रेम विचित्र सखी, चहुंँ ओर बहै सरिता में रवानी ।।
मन सों मन तनहूं से तन यह प्रेम अगन की अकथ कहानी ।
प्रेम हरी को रूप कहैं , हरि प्रेम स्वरूप पुरान बखानी ॥
प्रेम की लौ बड़ी तेज अली जो जारै देहॅं जरै तरुनाई ।
साजन की जो देंह मिलै ,
तो खिलै यह देंंह रही मुरझाई ।।
हिय की बात हियै मांँ रहे ,
यह जाय कबौ नहिं काहु बताई ।
रज्जन प्रेम करो सजनी ,
यह प्रीत की रीत अनत सुखदाई ।।
काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह अरु ,
द्रोह की बात करै सब कोई ।
प्रेम परे सब काहु अली जो प्रेम करे जानै सोइ सोई ।।
दिल से दिल एहिं भांँति मिले ,
जिमि सरिता सागर जाहिं बिगोई ।
प्रेम अजूबो खेल सखी ,
कहें रज्जन कौन जो प्रेम ना रोई ।।
ऊधव तेरो ब्रम्ह ज्ञान पे हमको तनिक भरोषो नाहीं ।
केशव के बिन जीवन को अब ,
अपनो तनिक भरोषो नाहीं ।।
इसपे चढ़ो है मोहन को रंँग दूसर , रंग चढ़ैगो नाहीं ।
रज्जन प्रेम की पाती पढ़िकै दूसर ग्रंथ पढ़ैगो नाही ।।
पास रहे कछु खास नहीं अरु दूर भये ढूंढ़त जग सारो ।
प्रेम अलौकिक दीख परै नहीं पै भटके जग मारो मारो ।।
रज्जन माया बीच फँस्यो ,
अरु माया पति को काहे विसारो ।
श्याम को प्रेम पीयूष सखी
पिय प्रेम बिना भव कूप है खारो ॥
रज्जन सरल
तिहाई जिला सतना म०प्र०
दिनांक ०१/११/२०२३