कवितालयबद्ध कविता
"प्रेम गाथा"
कल्पतरु सी मृदु लता,सौन्दर्य की ऐसी छटा।
देखकर अंत भी जीवंत हुआ,देवताओं का देवत्व घटा।।
श्रृंगार में झलकती दीप्ति,सौन्दर्य सुरम्य भोर सी लालिमा।
मुख पर छाई चंद्रप्रभा,शशि पर डालदे प्रगाढ़ कालिमा।।
मुस्कान तेरी मोहले मोहिनी,जैसे सुमन मोहता भंवरा सदा।
अधर लगते पाटल सुगन्धित,पुकारते हेमंत यदाकदा।।
एक नजर भर देखे जो मृगनयनी,करवंठ लेता मन में प्रेम प्रवाह।
प्रेम निशानी देदूं मुद्रिका,पहुंचे मुझतक तेरे हिय की पुलकित राह।।
मखमली वस्त्रों की दमक तुझपे,अप्सरा तूं करना चाहें देवता वंदन।
अनुराग की घटा छाई मुझपे,मिलन बिना उठता मन में विरह क्रंदन।।
मेरे लिए करवों का व्रत रखती,प्रेम का मुझको अद्भुत साक्ष्य मिला।
अपनी आयु घटाकर मेरी आयु की कामना करती, अवनि-अंबर में तुझसा ना प्रेमी अक्षय मिला।।
परहित कर्मों से तपती तेरी जीवन बेला,जीवन तेरा प्रेम-रेला अथाह।
संघर्ष है नित जीवन कर्म तेरा,गाता संघर्ष तेरी शाश्वत प्रेम गाथा।
Dated:-31/10/2023.
रचियता:- हेमंत।