कवितालयबद्ध कविता
थोडी दूर रखो ईर्ष्या, कहो
हमे तुमपर नाज, तुम्हें हमपर नाज ,
बस छोटी सोच है यह जीत-हार
सर पे, तेरे भी ताज, मेरे भी ताज ।
झगड़े क्यों जब एक ही आसमां
जिसमें तु भी बाज, मैं भी बाज ,
तोड़ सारी रंजिशे, कह
ना तुम नाराज, ना हम नाराज ।
रगो में खून एक ही, फिर क्यों
यह तेरा रिवाज, यह मेरा रिवाज ,
जानते हो न, कभी थम जाएगी
तेरी भी आवाज, मेरी भी आवाज ।