कवितानज़्म
*जीने के लिए मरता हूँ मैं*
मुझे तुम दरकिनार करते हो तुमसे वस्ल का इज़हार करता हूँ मैं
तुम मुझसे दूर जाते हो तुमको दिल-ओ-जाँ से प्यार करता हूँ मैं
दूध का जला छाछके जलने से फूंक-फूंक कर क़दम धरता हूँ मैं
हिज्र-ओ -फुरक़त-ओ-फ़िराक़- ए- हबीब में मरने से डरता हूँ मैं
जिंदगी जीकर मरते हैं लोग जीने के लिए मग़र बशर मरता हूं मैं
©️"बशर"/६/११/२३