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कवितानज़्म
*तलब ना कर* रवायतों को बहने दे हवाओं के साथ, जो कभी नहीं किया बशर अब न कर! खुद ही अपना मसअला बना कर जमाने की नजरों में आने की तलब ना कर !! ©डॉ.एन.आर. कस्वाँ "बशर" ०४/११/२०२३