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*कण कण में भगवान* - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

*कण कण में भगवान*

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*कण कण में भगवान*

कौन चलाता है येह जहान
होगा कबतक यूंही अनजान!

प्रत्यक्ष को मांग रहा प्रमाण
पहचान नहीं रहा है इन्सान!

ज़र्रा-ज़र्रा सुधि देता उस की
बसे हैं कण कण में भगवान!

अनावश्यक आवेश में क्यूं तू
ढोता बोझिल अपना अज्ञान!

मिथ्याके भ्रम में ना पड़ा कर
उस की सच्चाई को पहचान!

तज दे झूठे सारे अभिमान
कब तक बना रहेगा नादान!

गैरोंके मशवरे छोड़कर बशर
अब तो ले ले खुद ही संज्ञान!

©डॉ.एन.आर.कस्वाँ "बशर"
०४/११/२०२३

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