कवितानज़्म
*पीने आ जाया करो*
तबियत बेहतर हो जाएगी जबभी जीचाहे पीने आ जाया करो,
मयकशी के बहाने से ही सही, कुछ लम्हे जीने आ जाया करो!
हयाते- मुस्त'आर शगुफ्त- ओ-शाबाद रहे मयखाने आबाद रहें,
पीने के बहाने गम के साथी लगाने अपने सीने आ जाया करो!
डॉ.एन.आर. कस्वाँ "बशर"
०२/११/२०२३