कवितानज़्म
सब का अपना ज़माना होता है
सब का अपना फ़साना होता है
ज़माना अपना पुराना होता है
जमाने से सबको जाना होता है
जाना हाथ न आना हाथ हमारे
पर हमारा आना जाना होता है
जाने वाले को जाना होता है
बे -सबब आँसू बहाना होता है
रौशनी शम्अ की औरों के लिए
जलने के लिए परवाना होता है
कारवां -ए -हयात में साथ मग़र
हर कोई यहाँपर बेगाना होता है
वक़्त को कहांँ फुर्सत गुजरने से
बंदा फुर्सत का दीवाना होता है
बाहर जितनी भीड़ जुटा ले बंदे
भीतर में सब के वीराना होता है
हमदर्द तिरा बन जाता है बशर
ज्यों ज्यों दर्देदिल पुराना होता है
डॉ.एन.आर.कस्वाँ "बशर"
२७/१०/२०२३