कवितानज़्म
*उम्मीद*
दौड़ है जिंदगी दम लगा कर दौड़िए
उम्मीदों का दामन कभी मत छोड़िए।
है सुनहले ख्वाबों के सिलसिले मधुर
इन सपनों की लड़ियों को मत तोड़िए।
मन मलिन ना कीजिए मन मुटाव में
अपनों से ना कभी मुंह अपना मोड़िए।
शाद कभी नाशाद कभी आबाद सभी
हर-सू हर्ष ही की लड़ियों को जोड़िए।
उत्सव रंगों-रौशनी के मिलके मनाइए
उत्साह से खुशियों के पटाखे फोड़िए!
रकीबों के हुजूम में अहबाब भी तो हैं
अदावतें भूल कर दोस्तों को जोड़िए।
मंज़िल पर रख नज़र करो पूरा सफ़र
मील पर दबे पड़े पत्थरों को छोड़िए।
दौड़ है जिंदगी दम लगा कर दौड़िए
उम्मीदों का दामन कभी मत छोड़िए।
©डॉ.एन.आर.कस्वाँ "बशर"