कविताभजनलयबद्ध कवितागजलदोहाछंदचौपाईगीत
माॅं
कभी लोरी सुनाती है, कभी झूला झुलाती है ।
वो ऐसी शख्सियत ममता मयी ,
होती है दुनिया में ।
स्वयं काटों पे सोकर तुझको फूलों पे सुलाती है ।
कोई रमजान कहता है, किसी को जुम्मा कहते हैं इबादत करते हम जिसकी ,
उसे हम अम्मा कहते हैं ।।
कलेवा है दुपहरी है बियारी है ।
माँ है तो गुलजार ये फुलवारी है ।
मांँ नही तो वीरान लगे जग सारा ।
मांँ है तो सारी दुनियांँ तुम्हारी है ।।
भरोसा तब उठा मेरा ।
है शाया जब उठा तेरा ।
नहीं कुछ शेष दुनिया मे ,
तेरे इस लाल की खातिर ।
सभी अरमान थे टूटे जनाजा जब उठा तेरा ॥
कोई तुमसा नहीं अब इस जहां मे दीखता दूजा ।
कि तुमको भूलकर करने लगूंँ मांँ उसकी मैं पूजा ।
किया जिसपे भरोषा ठोकरें खाई हैं हर पल मे । मेरी तनहाइयों में मांँ तेरा बस नाम के गूंजा ॥
बड़ा ही निर्दयी है तू जो देके फिर से छीना है । बहुत अनमोल मां के रूप मे पाया नगीना है ।
ये जो भी रोशनी है चमचमाती सुर्ख दुनिया है । ये है कुछ भी नहीं बस एक उसका ही पशीना है।
नही चहिए हमें शोहरत,
नहीं दौलत नहीं ताकत |
तेरे होने से आ सकती नहीं ,
मुझपे कोई आफत ।
तु है मांँ तो भला मुझको है फिर क्या काम दुनिया से।
नही चाहिए, नही चाहिए, मुझे संसार की शोहवत ।।
कोई, कहता है ऐसा है, कोई कहता है वैसा है । जहां मे कुछेक लोगों का तो बस भगवान पैसा है मुझे क्या काम ईश्वर से ,
मुझे पैसो से क्या मतलब ।
किसी ने सच कहा भगवान मेरी मांँ के जैसा है ।
न ही अब आश बांँकी है ,
न ही उल्लास बाकी है ।
कि मरकर मैं तेरे जब पास आऊंँगा मेरी अम्मा ।
कलेजे से लगायेगी यही इक प्यास बांकी है।
मै तेरा साथ पाना चाहता हूँ ।
तेरी रोटी मैं खाना चाहता हूँ ।
जनम मरकर दुबारा जब जहां में होगा मेरा।
मेरी मांँ तुझको ही मै फिर से पाना चाहता हूंँ ।।
रज्जन सरल
सतना म०प्र०
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