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अम्मा - Rajjansaral (Sahitya Arpan)

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अम्मा

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माॅं
कभी लोरी सुनाती है, कभी झूला झुलाती है ।
वो ऐसी शख्सियत ममता मयी ,
होती है दुनिया में ।
स्वयं काटों पे सोकर तुझको फूलों पे सुलाती है ।


कोई रमजान कहता है, किसी को जुम्मा कहते हैं इबादत करते हम जिसकी ,
उसे हम अम्मा कहते हैं ।।


कलेवा है दुपहरी है बियारी है ।
माँ है तो गुलजार ये फुलवारी है ।
मांँ नही तो वीरान लगे जग सारा ।
मांँ है तो सारी दुनियांँ तुम्हारी है ।।

भरोसा तब उठा मेरा ।
है शाया जब उठा तेरा ।
नहीं कुछ शेष दुनिया मे ,
तेरे इस लाल की खातिर ।
सभी अरमान थे टूटे जनाजा जब उठा तेरा ॥

कोई तुमसा नहीं अब इस जहां मे दीखता दूजा ।
कि तुमको भूलकर करने लगूंँ मांँ उसकी मैं पूजा ।
किया जिसपे भरोषा ठोकरें खाई हैं हर पल मे । मेरी तनहाइयों में मांँ तेरा बस नाम के गूंजा ॥

बड़ा ही निर्दयी है तू जो देके फिर से छीना है । बहुत अनमोल मां के रूप मे पाया नगीना है ।
ये जो भी रोशनी है चमचमाती सुर्ख दुनिया है । ये है कुछ भी नहीं बस एक उसका ही पशीना है।

नही चहिए हमें शोहरत,
नहीं दौलत नहीं ताकत |
तेरे होने से आ सकती नहीं ,
मुझपे कोई आफत ।
तु है मांँ तो भला मुझको है फिर क्या काम दुनिया से।
नही चाहिए, नही चाहिए, मुझे संसार की शोहवत ।।
कोई, कहता है ऐसा है, कोई कहता है वैसा है । जहां मे कुछेक लोगों का तो बस भगवान पैसा है मुझे क्या काम ईश्वर से ,
मुझे पैसो से क्या मतलब ।
किसी ने सच कहा भगवान मेरी मांँ के जैसा है ।

न ही अब आश बांँकी है ,
न ही उल्लास बाकी है ।
कि मरकर मैं तेरे जब पास आऊंँगा मेरी अम्मा ।
कलेजे से लगायेगी यही इक प्यास बांकी है।

मै तेरा साथ पाना चाहता हूँ ।
तेरी रोटी मैं खाना चाहता हूँ ।
जनम मरकर दुबारा जब जहां में होगा मेरा।
मेरी मांँ तुझको ही मै फिर से पाना चाहता हूंँ ।।

रज्जन सरल
सतना म०प्र०
७७२५८०७०११
mail id : rajjansaral@gmail.com

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