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कोरोना महराज - Rajjansaral (Sahitya Arpan)

कवितादोहाचौपाई

कोरोना महराज

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  • 7 Min Read

कोरोना चालीसा

दोहा: हे अदृश्य शक्ति तुम्हे बारम्बार प्रणाम ।
पड़ा कोरोना नाम है, जानत विश्व तमाम ।।

चौपाई :

हे विचित्र हे काल महाना ।
पता नही क्या तुमने ठाना ।

रहते कहाँ खाते हो क्या तुम।
हमें मार पाते हो क्या तुम।

कहते चीन है बाप तुम्हारा ।
कहां रखेगा पाप ये सारा ।

तुमने कितनों का घर छीना ।
कोऊ रोटी दाल बिहीना ।।

काहू केर नौकरी लीन्ही ।
काहू फेर मशीन है छीनी ।।

वाह रे तोही दया न आई ।
तुम तो हो बड़े ढीठ कसाई ।।

चले गए थे बीस मे तुम जब ।
फिर आए इक्कीस मे क्यूंँ अब ।।

तुम्हरे कितने रूप है सारे ।
तुम काहे टरते नही टारे ।।

हार गए सब देश हैं तुमसे ।
खाए बैठे ठेस हैं तुमसे ।।

तुम्हरे नाम का अर्थ है जाना ।
एक दिन सबको ही मर जाना ।।

को- से कोई बचे ना जग मे ।

रो - से रोने वाला जग मे ।

ना - से नाश है होने वाला ।

कोरोना बहुतय बिकराला ।

जो कोई तुम्हरे पास है आवे ।
पानी बूड़ नही बच पावे ।।

जापर कृपा तुम्हारी होई ।
ता पर कृपा करें नही कोई ।।

मरे मा कोऊ पास न आवै ।
चिता भी अब सरकार जलावै ।।

राख फूल भी घर नही आवै ।
ना कोऊ गंगा पहुंचावै ।।

अब कैसन कोउ मुक्ती पाई ।
पूजा पाठ बंद होइ जाई ।।

पढ़ब लिखब सब बंद भयो है ।
काज वियाह भी बंद भयो है ।।

कैसन दुनियांँ आँगे होई ।
ए सब सोच रहे हर कोई ।।

दोहा : हाथ जोड़ विनती करूँ कोरोना महाराज।
अब तो हमको छोड़ दे , डूबत जात जहाज ॥

शब्द रचना: रज्जन सरल
सतना ( म०प्र०)
सम्पर्क : ७७२५८०७०११

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