कवितादोहाचौपाई
कोरोना चालीसा
दोहा: हे अदृश्य शक्ति तुम्हे बारम्बार प्रणाम ।
पड़ा कोरोना नाम है, जानत विश्व तमाम ।।
चौपाई :
हे विचित्र हे काल महाना ।
पता नही क्या तुमने ठाना ।
रहते कहाँ खाते हो क्या तुम।
हमें मार पाते हो क्या तुम।
कहते चीन है बाप तुम्हारा ।
कहां रखेगा पाप ये सारा ।
तुमने कितनों का घर छीना ।
कोऊ रोटी दाल बिहीना ।।
काहू केर नौकरी लीन्ही ।
काहू फेर मशीन है छीनी ।।
वाह रे तोही दया न आई ।
तुम तो हो बड़े ढीठ कसाई ।।
चले गए थे बीस मे तुम जब ।
फिर आए इक्कीस मे क्यूंँ अब ।।
तुम्हरे कितने रूप है सारे ।
तुम काहे टरते नही टारे ।।
हार गए सब देश हैं तुमसे ।
खाए बैठे ठेस हैं तुमसे ।।
तुम्हरे नाम का अर्थ है जाना ।
एक दिन सबको ही मर जाना ।।
को- से कोई बचे ना जग मे ।
रो - से रोने वाला जग मे ।
ना - से नाश है होने वाला ।
कोरोना बहुतय बिकराला ।
जो कोई तुम्हरे पास है आवे ।
पानी बूड़ नही बच पावे ।।
जापर कृपा तुम्हारी होई ।
ता पर कृपा करें नही कोई ।।
मरे मा कोऊ पास न आवै ।
चिता भी अब सरकार जलावै ।।
राख फूल भी घर नही आवै ।
ना कोऊ गंगा पहुंचावै ।।
अब कैसन कोउ मुक्ती पाई ।
पूजा पाठ बंद होइ जाई ।।
पढ़ब लिखब सब बंद भयो है ।
काज वियाह भी बंद भयो है ।।
कैसन दुनियांँ आँगे होई ।
ए सब सोच रहे हर कोई ।।
दोहा : हाथ जोड़ विनती करूँ कोरोना महाराज।
अब तो हमको छोड़ दे , डूबत जात जहाज ॥
शब्द रचना: रज्जन सरल
सतना ( म०प्र०)
सम्पर्क : ७७२५८०७०११