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कवितानज़्म
रोज-ओ-शब शामो-सहर बशर हर-पल हर-पहर घोला है कंकरीट के जंगलों में मुसलसल आदमी ने ज़हर घोला है ©डॉ.एन.आर.कस्वाँ"बशर" २६/१०/२०२३