कवितानज़्म
*वालदैन का इम्तिहान*
नाकामयाब संतान होती है,
वालदैनका इम्तिहान होती है।
मां - बाप की नींद उड़ाकर ,
चादर तान संतान सोती है।
क़िस्मत को कोसती है अक़्सर
मुसलसल मुक़द्दर को रोती है।
काम - धाम में क्या रखा है,
विरासत तो उन की बपोती है।
आलम-ए-बेखुदी में बेख़बर
व्यर्थ अपना जीवन खोती है।
माना कि लाइलाज मर्ज की
दुआ आख़री शिफ़ा होती है।
क्या कहिए क्या करिए बशर
दवा से बढ़ कर दुआ होती है।।
@*बशर*