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कवितानज़्म
*जिंदगी का पता नहीं* कज़ा है बहुत क़रीब मग़र बशर जिंदगी का पता नहीं! देखा है इसे क़रीब से हमने पर जिंदगी का पता नहीं! डॉ.एन.आर. कस्वाँ "बशर"/३०/१०/२०२३