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इससे उजले प्रतीक नहीं - सोभित ठाकरे (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

इससे उजले प्रतीक नहीं

  • 90
  • 3 Min Read

क्षितिज जाने
कितनी दूर है उसकी जमीं
कितना करीब है उसका आसमां
नदी पहचाने
राग धाराओं का
कैसे ठिठक ठिठक कर शोर करना
प्रभा की सूक्ष्म रेखाओं का
अंबर में बिखर यों
ज्योति पुंज सा प्रखर हो आशातीत होना
उच्च्छ्वास में घुलती प्रवात
रोम रोम आह्लादित करती
कभी मंद , तो कभी यों उसका वेगवान
आना जाना
प्रकृत हैं सभी
कृत्रिमता का लेस नहीं
यही तो जीवंतता है
यहां हर एक का अपना
किरदार नया
अंदाज़ नया
इससे नायाब रूप नहीं
इससे उजले प्रतीक नहीं
इससे उजले प्रतीक नहीं......!!
सोभित ठाकरे

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