कवितानज़्म
मुलाक़ात तो होती है बात नहीं होती
बात तो होती है मुलाक़ात नहीं होती
सागर से पानी भर तो लाते हैं बादल
जहां हमचाहें वहाँ बरसात नहीं होती
हवा के साथ साथ उड़ जाते हैं बादल
वीराने सहरा में बरसात नहीं होती
चश्मे -तर रहती थी फ़िराक़े-हबीब में
सूखी आंखोंसे अब बरसात नहींहोती
आग जो बरसेतो दरिया सूख जाते हैं
आंसू सूख जाना बड़ी बात नहीं होती
हिज्र में हबीब के हुए एक दिन-रैन
रातसे दिन बशर दिनसे रातनहीं होती
✍🏻डॉ.एन.आर.कस्वाँ "बशर"
२९/१०/२०२३/सरी