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कवितानज़्म
*मिटादो मन-मुटाव जमाने से* मिटा दो सारे मन-मुटाव बशर जमाने से ख़त्म झगड़े हो जाते हैं इक मुस्कुराने से डॉ.एन.आर.कस्वाँ "बशर" २९/१०/२०२३/सरी