कवितागजल
ग़ज़ल - 2122 2122 2122
दिन ब दिन बेहाल होती जा रही है
ज़िन्दगी जंजाल होती जा रही है
दर्द , दुख , अवसादमय है एकदम से
खुशियों से कंगाल होती जा रही है
रोज थप्पड़ खा रही है ठोकरों की
हर पहर अब लाल होती जा रही है
सह रही तानों की अब तलवार हर दिन
हू -ब- हू ये ढाल होती जा रही है
हर क़दम बच बचके रखना पड़ रहा है
राह तो बिकराल होती जा रही है
पूछिए मत हाल मेरी ज़िन्दगी का
दिन ब दिन बेहाल होती जा रही है
— सनी सिंह