Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
*जग से नहीं हौड़ बशर* - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

*जग से नहीं हौड़ बशर*

  • 41
  • 3 Min Read

*जग से नहीं हौड़ बशर*

मुझे जगसे नहीं कोई हौड़ बशर
मिरी तुझ तक है बस दौड बशर

है तू ही तो बस इक हबीब मेरा
मुझे मझधार बीच न छोड़ बशर

हयाते - मुस्तार का तब्सिरा क्या
सौ बातोंका तू एक निचोड़ बशर

फ़ानी दुनिया सारी आनीजानी है
बस इक तू नाता ना तोड़ बशर

इक तिरे से है दुनियादारी अपनी
जगकी सौ बातोंका तू जोड़ बशर

मरहले हैं ना मंज़िल कोई अपनी
इक तेरेसिवा मेरी नहीं ठौड़ बशर

©डॉ.एन.आर.कस्वाँ "बशर"
१६/१०/२०२३/सरी

InCollage_20230823_201139231_1697419535.png
user-image
तन्हा हैं 'बशर' हम अकेले
1663935559293_1726911932.jpg
ये ज़िन्दगी के रेले
1663935559293_1726912622.jpg
यादाश्त भी तो जाती नहीं हमारी
logo.jpeg
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg