कविताभजनलयबद्ध कवितागजलदोहाछंदचौपाईअन्यगीत
नित वंदना करले मना, बद्री प्रपन्नाचार्य की -2
धन्य जीवन को बना कर अर्चना आचार्य की ।।
नित वंदना कर .........
ज्ञान पुंज हैं , वेद वक्ता हैं सनातन सूर्य वो ।
ऐसे गुरु की शरण गह ले कष्ट करते दूर वो ।।
रामधन सच्चा कमा ले छोंड़ सब संसार की ।
नित वन्दना करले मना ........
उनसा कोई है नही ऐसी विलक्षण संत हैं ।
नेत्र बिन ताक हृदयंँ में, राजते सदग्रन्थ हैं ।।
राजगुरु क मुख से सुन ले तू कथा करतार की ।
नित वन्दना करले मना........
श्री राम की किरपा हमारे स्वामी जी को प्राप्त है।
जो कि भव से पार जाने के लिए पर्याप्त है ।।
चरण रज मस्तक लगा बद्री प्रपन्नाचार्य की ।
नित वंदना कर ले मना बद्री प्रपन्नाचार्य की।।
ज्ञान गंगा रोज बहती, भक्ति व सुविचार की।
शब्द रचना : रज्जन सरल
सतना ( म०प्र०)