कविताअतुकांत कविताभजनगजलदोहाछंदचौपाईगीत
' जेल की जिंदगी '
जिन्दगी जेल की अनोखी है । -2
ना जाने भूल किन दिनों की है।
जिन्दगी जेल----
हरेक शख्स है अपने मे गुम यहांँ पर तो ।
नहीं है चैन किसी को कभी यहांँ पर तो ॥
सिर्फ एक आस बस जजों की है।
जिन्दगी जेल..............
बच्चे बिलखते हैं उधर बीवी भी उदास पड़ी ।
पिता है मौन विपत कैसी भला आन पड़ी ।।
माँ की आँखों मे एक नमी सी है।
जिन्दगी जेल -...........
वकीलों की तो है बरात लगी लगी ।
सारा दिन रात मुलाकात लगी ।।
मिलती तारीख बस दिनों की है।
जिन्दगी जेल.............
पेट पापी है कमी भरता नहीं ।
मौत दुश्मन है बनी कोई भी क्यों मरता नही ।।
जिन्दगी है तो गफलतों की है ।
जिन्दगी जेल.........