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*हयात ने मारा बशर* - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

*हयात ने मारा बशर*

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*हयात ने मारा बशर*

क़ज़ा से कौन कर सकता है किनारा बशर
आदमी को तो उसकी हयात ने मारा बशर

मौत तो हुईहै मुफ्त में बदनाम यहाँपर मग़र
जिन्दगी ने अक्सर तोड़ाहै सब्र हमारा बशर

@"बशर"

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तन्हा हैं 'बशर' हम अकेले
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ये ज़िन्दगी के रेले
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यादाश्त भी तो जाती नहीं हमारी
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प्रपोजल
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वो चांद आज आना
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