कविताअतुकांत कविताबाल कविताअन्यबाल कविता
"किसान का बेटा"
मै किसान का
बेटा हूं
खेत,हल,बैल
इसी से मै जानता हूं
बोता हूं अनाज
फिर
सिंचता हूं फसल
फिर
काटता हूं फसल
फिर
मै अनाज को
पाता हूं
जोत देता हूं
फिर
अगली फसल के लिए खेत
तन के एक-एक
रक्त के कण को
देश को
देता हूं
भीगे वसन से
इसी से मै
पहचानता हूं।
"जमीन"
मैने अपनी जमीन बेची।
बाहर पड़े हुए मुर्दो से अच्छा है
कि मै अपनी
थोड़ी-थोड़ी जमीन बेचूँ
तेज धूप, वर्षा
ठीठुराती ठण्ड से अच्छा है
जब तक मेरा घर है
तब तक मै उसी मे रहूं
बाहर जो खड़े हैं
उन्हे मै पहचानता हूं
जो जल रहे हैं
उन्हे मै जानता हूं
धीरे-धीरे कर के यादगारी तौल दूंगा
यह जमीन बेच दूंगा
जब तक बिकती रहेगी यह जमीन
तब तक मै वृद्ध होता रहूंगा
जब बीक जायेगी सम्पूर्ण जमीन
तब मै वृद्ध हो चूका रहूंगा
और अन्ततः फिर
धीरे से यह घर बेच दूंगा
तीन पैरों के साथ काँपते
आ जाऊंगा सड़क पर
फिर धीरे-धीरे करके
मिल जाऊंगा इस मिट्टी मे।