Or
Create Account l Forgot Password?
कवितानज़्म
घिर आए यादों के बदरा विरह की रुत में घिर-घिर आए यादों के बदरा मौसमे-ए-फिज़ा में भी फिर हुआ दिल ये हरा ©डॉ.एन.आर. कस्वाँ "बशर" १५/१०/२०२४/सरी