Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
*दरीचों से देखते रह जाएंगे* - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

*दरीचों से देखते रह जाएंगे*

  • 43
  • 3 Min Read

*दरीचों से देखते रह जाएंगे*

हम तो उनके शहर से निकल आएंगे
अपने दरीचों से वो देखते रह जाएंगें

हम नहीं कहीं पर नज़र उन्हें आएंगे
दरो-दीवारों को वोह देखते रह जाएंगे

राज-ए-उल्फ़त छुपाकर क्या हासिल
हम संभल पाएंगे न वो संभल पाएंगे

हमारे पलट कर देखने की जुस्तजू में
हमारे रास्तों को वोह देखते रह जाएंगे

बाट हमारी बशर हजार जलाकर दीये
दीयोंकी लौ को वोह देखते रह जाएंगे

©डॉ.एन.आर.कस्वाँ *बशर*

InCollage_20230921_221723484_1697327305.jpg
user-image
चालाकचतुर बावलागेला आदमी
1663984935016_1738474951.jpg
मुझ से मुझ तक का फासला ना मुझसे तय हुआ
20220906_194217_1731986379.jpg
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg