कवितानज़्म
*इल्ज़ाम लगाते रह गए*
*बशर*✍🏻नाम
कोशिशें छोड़कर हम बस इल्ज़ाम लगाते रह गए,
अपनी नाकामयाबी गैरों के नाम लगाते रह गए!
बे -सबब बे-मतलब बे-काम हर काम अधूरा रहा,
अपनाकाम छोड़कर औरोंको काम बताते रह गए!
कहानी अधूरी रही हमारा फ़साना अधूरा रह गया,
आग़ाज़ किया ही नहीं और अंजाम बताते रहे गए!
बुरी थी आदत बुरी ही रही, इबादत अधूरी रह गई,
बारबार सजदे उठ-उठ कर अज़ान लगाते रह गए!
क़ुसूर तेरा था न मेरा था इसका था ना उसका था,
कुछ और न सूझा वक़्तको बलवान बताते रह गए!
बाईस-ए-सबब किस्सा-कहानी बशर कुछ और था,
नाहक नामुराद इक दूसरेपे इल्ज़ाम लगाते रह गए!
डॉ.एन.आर. कस्वाँ
"बशर"/१२/१०/२०२३